Asian Markets Fall: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सभी चीनी वस्तुओं पर लगाए गए न्यूनतम 104 प्रतिशत टैरिफ की धमकी अब हकीकत बन चुकी है. यह टैरिफ बुधवार को तड़के 12:01 बजे (ईस्टर्न टाइम) से लागू हो गया है, जिससे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध काफी बढ़ गया है.
दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश चीन इस टैरिफ हमले से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है, लेकिन 85 अन्य देशों पर भी शुल्क लागू कर दिए गए हैं — जिनमें कंबोडिया पर 49 प्रतिशत और वियतनाम पर 46 प्रतिशत टैरिफ शामिल हैं.
एशियाई शेयर बाजारों में बुधवार को ट्रेडिंग की शुरुआत गिरावट के साथ हुई, क्योंकि अमेरिका के शेयर बाजारों में भारी उतार-चढ़ाव के बीच S&P 500 इंडेक्स 1.5 प्रतिशत गिरकर बंद हुआ. फरवरी मध्य से अब तक इसमें लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है — जो कि एक ‘बियर मार्केट’ की स्थिति के करीब है.
हांगकांग का हैंग सेंग इंडेक्स, जिसमें कई चीनी निर्यातक कंपनियां सूचीबद्ध हैं, बुधवार को ट्रेडिंग के दौरान लगभग 4 प्रतिशत गिर गया, हालांकि बाद में इसमें कुछ सुधार हुआ. जापान का निक्केई 225 इंडेक्स दोपहर तक 4 प्रतिशत से ज़्यादा गिर चुका था, जबकि ऑस्ट्रेलिया का ASX 200 इंडेक्स लगभग 2 प्रतिशत नीचे था और दक्षिण कोरिया का KOSPI इंडेक्स 1.4 प्रतिशत गिरा.
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने मंगलवार को पुष्टि की कि चीन पर टैरिफ 104 प्रतिशत तक बढ़ा दिए गए हैं. उन्होंने कहा, “चीन की प्रतिक्रिया देना एक गलती थी. जब अमेरिका पर हमला होता है, तो [राष्ट्रपति] उससे ज्यादा जोर से पलटवार करते हैं.” हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि ट्रंप बातचीत के लिए तैयार हैं — लेकिन शर्त यह है कि बीजिंग पहले संपर्क करे. “अगर चीन समझौते के लिए संपर्क करता है, तो राष्ट्रपति बेहद उदारता दिखाएंगे, लेकिन वह अमेरिकी जनता के हित में ही फैसला करेंगे.
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बुधवार तक यह स्पष्ट नहीं था कि बीजिंग कैसे जवाब देगा. हालांकि, चीनी सरकारी मीडिया में यह स्पष्ट संदेश दिया गया कि चीन पीछे नहीं हटेगा.सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के पूर्व पत्रकार द्वारा संचालित एक लोकप्रिय ब्लॉग ‘नियू तानचिन’ पर एक लेख में लिखा गया, “आप जितने कमज़ोर होंगे, अमेरिका उतना ही ज़्यादा खुश होगा और उतनी ही ज्यादा चोट पहुंचाएगा.”
जैसे-जैसे यह व्यापारिक टकराव बढ़ता जा रहा है, बीजिंग इसे केवल चीन को रोकने की अमेरिकी कोशिश के रूप में देखने लगा है. फूडान यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर अमेरिकन स्टडीज के प्रोफेसर झाओ मिंघाओ ने कहा, “बीजिंग अब ट्रंप टीम से बातचीत को लेकर धैर्य खोता जा रहा है. उन्हें लगता है कि अमेरिका वास्तव में किसी भी समझौते को लेकर गंभीर नहीं है.” इस बीच, अन्य देश अमेरिका के साथ समझौते की कोशिश कर रहे हैं ताकि उन पर टैरिफ न लगे. अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेन्ट ने CNBC को बताया कि करीब 70 देशों ने अमेरिका से बातचीत के लिए संपर्क किया है.
अर्जेंटीना, वियतनाम और इज़राइल ने संकेत दिया है कि वे अमेरिकी उत्पादों पर लगाए गए टैरिफ और नियमों को हटा देंगे, जबकि दक्षिण कोरिया और जापान सक्रिय रूप से बातचीत में जुटे हैं. ट्रंप ने मंगलवार को सोशल मीडिया पर कहा कि उन्होंने दक्षिण कोरिया के कार्यवाहक राष्ट्रपति के साथ “बेहद अच्छी बातचीत” की है, जिसमें दक्षिण कोरियाई निर्यातों पर प्रस्तावित 25 प्रतिशत टैरिफ को हटाने पर चर्चा हुई.
चीन से आयातित वस्तुओं पर इस भारी टैरिफ से अमेरिका में कपड़े, जूते और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें जरूर बढ़ेंगी — जिसकी ओर चीनी मीडिया लगातार इशारा कर रहा है. चाइना टॉय एंड जुवेनाइल प्रोडक्ट्स एसोसिएशन की अध्यक्ष लियांग मेई ने सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स से कहा, “यहां के निर्माता इस बोझ को वहन नहीं कर सकते.” उन्होंने कहा कि अमेरिकी रिटेलर इसका कुछ बोझ उठाएंगे, लेकिन बाकी लागत “अमेरिकी उपभोक्ताओं पर डाल दी जाएगी.”
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टोक्यो स्थित निक्को एसेट मैनेजमेंट की चीफ ग्लोबल स्ट्रैटजिस्ट नाओमी फिंक ने कहा कि यह टैरिफ “सबसे पहले अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए एक झटका होगा,” जिसका असर अमेरिकी बाजार में निर्यात करने वाले अन्य देशों पर भी पड़ेगा. उन्होंने कहा, “चीन ने भी यह बात कही है कि वे इसलिए पलटवार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यह अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए एक असली संकट है — और वही अमेरिकी वोटर भी हैं.”
ट्रंप ने मंगलवार को चीन से आने वाले कम मूल्य वाले पार्सल (अंडर $800) पर लागू शुल्क को तीन गुना कर दिया — अब इन पर 90 प्रतिशत टैक्स लगेगा, जो कि पहले 30 प्रतिशत तय किया गया था. यह नियम 1 जून से लागू होगा. बीजिंग ने पलटवार करते हुए अपने टैरिफ लगाए हैं, साथ ही एक्सपोर्ट कंट्रोल और इंपोर्ट बैन जैसे अन्य कदम भी उठाए हैं. दोनों पक्षों की इस बढ़ती टकराव की स्थिति में बातचीत की संभावना और कम हो गई है.
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की अर्थशास्त्री लिज़ी सी. ली ने कहा, “एक बिंदु के बाद, और ज़्यादा टकराव का कोई मतलब नहीं रह जाता. चीन शायद यह तय करे कि अब बातचीत का कोई औचित्य नहीं है — और फिर प्रतिशोध उन रूपों में हो सकता है जिनके लिए अमेरिका तैयार नहीं होगा.”
ली के अनुसार, चीन अमेरिकी ड्रग संकट से निपटने के लिए जारी फेंटानिल सहयोग को रोक सकता है, अमेरिकी कृषि, ऊर्जा या सेवाओं के आयात पर रोक लगा सकता है, या उन देशों के साथ तेज़ी से व्यापारिक रास्ते खोल सकता है जो ट्रंप के टैरिफ से प्रभावित हैं. कई प्रभावशाली चीनी ब्लॉग्स ने यह भी सुझाव दिया है कि बीजिंग अमेरिका से आने वाली फिल्मों पर बैन लगाने पर विचार कर सकता है.
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चीनी वस्तुओं पर 104% टैरिफ कैसे पहुंचा
1 फरवरी: ट्रंप ने चीन से आने वाले उत्पादों पर 10% टैरिफ लगाया, कारण बताया गया — फेंटानिल की सप्लाई रोकने में चीन की विफलता.
प्रतिक्रिया में चीन: अमेरिकी कोयले और प्राकृतिक गैस पर 15% टैरिफ, कृषि उपकरण और कच्चे तेल पर 10%.
फरवरी अंत: ट्रंप ने 10% अतिरिक्त टैरिफ लगाया. बीजिंग ने जवाब में 15% टैरिफ अमेरिकी कृषि उत्पादों (मुर्गी, सूअर, सोया) पर लगाया.
9 अप्रैल: ट्रंप ने “लिबरेशन डे” पर 34% अतिरिक्त टैरिफ लगाया, कुल टैरिफ 54% हो गया.
जवाब में चीन: अमेरिका से सभी वस्तुओं पर 34% टैरिफ, दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर रोक, अमेरिकी कंपनियों की ब्लैकलिस्टिंग और WTO में शिकायत दर्ज की.
8 अप्रैल: ट्रंप ने चेतावनी दी कि अगर चीन ने टैरिफ नहीं हटाए तो 50% और जोड़ेंगे — जिससे टैरिफ 104% तक पहुंच गया.