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23 साल की लड़की बनी ब्रिटेन की सीक्रट जासूस, बच्ची बनकर हिटलर को दिया था चकमा, 135 दिन तक बदलती रही युद्ध का नक्शा


Phyllis Latour Doyle British Spy: दूसरा विश्व युद्ध चल रहा था. यूरोप हिटलर के कब्जे में था और ब्रिटेन हर दिन अपने जासूस खो रहा था. पुरुष एजेंट भेजे गए पर ज्यादातर पकड़े गए या मारे गए. तब ब्रिटेन ने एक अलग दांव खेला उन्होंने एक 23 साल की महिला को बच्ची का रूप देकर नाजी जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस में भेज दिया. नाम था फिलिस “पिप्पा” लाटूर डॉयल. वो अकेली गईं, लेकिन जो किया उसने दुनिया का युद्ध बदल दिया. 2023 में 102 साल की उम्र में जब उनका निधन हुआ तो उनके साथ विंस्टन चर्चिल की उस सीक्रेट सेना Special Operations Executive (SOE) की आखिरी महिला एजेंट भी चली गईं. अब दो साल बाद उनकी कहानी फिर से चर्चा में है. एक याद के रूप में कि हीरो वो नहीं जो दिखता है, हीरो वो है जो बिना बोले सब कर जाता है.

Phyllis Latour Doyle British Spy: जब मौत सामने थी तब भी मुस्कुराईं

मई 1944 की ठंडी रात थी. डी-डे से ठीक पांच दिन पहले, एक बमवर्षक विमान के खुले दरवाजे पर खड़ी थी 23 साल की लड़की. नीचे फैला था जर्मन सैनिकों से भरा नॉर्मैंडी. उसका कोडनेम था “जनीविएव.” उससे पहले जितने पुरुष एजेंट भेजे गए थे, सब पकड़े जा चुके थे. ब्रिटेन की SOE को अब कोई ऐसा चाहिए था जिस पर जर्मनों को शक ही न हो इसलिए चुनी गई फिलिस, छोटी कद-काठी, मासूम चेहरा, फ्रेंच भाषा में निपुण. एक ट्रेनर ने मजाक में कहा था कि बच्ची सी और भोली. लेकिन वही भोली लड़की आगे चलकर जर्मन खुफिया तंत्र को चारों खाने चित कर देने वाली साबित हुई.

Phyllis Latour Doyle British Spy: बच्ची से बनी जासूस 

1943 में फिलिस को ब्रिटेन के सीक्रेट ट्रेनिंग स्कूल भेजा गया. वहां उन्होंने मॉर्स कोड, हथियार चलाना, जिंदा रहने के तरीके, और फील्ड ट्रेनिंग सीखी. शुरुआती रिपोर्ट में लिखा गया कि थोड़ी सीधी-सादी है, ज्यादा समझ नहीं पर वो हर टेस्ट में डटी रहीं जैसे कि नकली पूछताछ, कोडिंग और जंगल में सर्वाइवल. उन्होंने बाद में कहा था कि मुझे तीन दिन सोचने को कहा गया पर मैंने तुरंत कहा मैं अभी जॉइन करती हूं. वो अब वही लड़की नहीं रहीं. वो बन चुकी थीं “जनीविएव”, वो जासूस जो नाजियों को भी मात देने वाली थी.

नाजी-नियंत्रित फ्रांस में एक साबुन बेचने वाली बच्ची

नॉर्मैंडी के खेतों में पैराशूट से उतरने के बाद उसने अपने रेडियो और कोड्स जमीन में छिपा दिए. वो बन गई 14 साल की ग्रामीण लड़की जो साइकिल पर साबुन बेचती थी. फटी कपड़े, बालों में रिबन, और चेहरे पर मासूम मुस्कान. उसी रिबन में छिपे थे ब्रिटिश जासूसी कोड. वो गांव-गांव घूमती, जर्मन सैनिकों से बातें करती, रास्ते, हथियार डिपो और छावनियों की जानकारी जुटाती. रात को जंगल में जाकर मॉर्स कोड में संदेश लंदन भेजती. हर बार जान पर खेलकर. क्योंकि जर्मन वैन रेडियो सिग्नल को मिनटों में पकड़ सकती थीं. इसलिए उसे हर बार जगह बदलनी पड़ती थी. एक बार दो जर्मन सैनिक उसके कमरे में आ धमके. वो तुरंत शांत हुई, रेडियो समेटा और बोली कि मुझे स्कारलेट फीवर है. सैनिक डरकर भाग गए. उसकी ये सूझबूझ ही उसकी सबसे बड़ी ताकत थी.

135 दिन, 135 संदेश और D-Day की जीत

अगले 135 दिनों तक फिलिस लगातार नाजी-नियंत्रित फ्रांस में साइकिल चलाती रहीं. उन्होंने 135 गुप्त संदेश भेजे किसी भी महिला एजेंट से ज्यादा. उनके संदेशों से ब्रिटिश सेना को जर्मन ठिकानों, सप्लाई रूट्स और बम गिराने की सटीक जानकारी मिली. यानी D-Day की तैयारी में उनका योगदान अमूल्य था. एक बार जर्मन सिपाही ने उसके बालों की रिबन देखी और कहा दिखाओ. वो मुस्कुराई, बाल खोल दिए. रिबन खुलकर नीचे लटक गई उसमें सारे कोड छिपे थे और जर्मन सैनिक हंसते हुए आगे बढ़ गए. वो शांत रही लेकिन उसके हर कदम से इतिहास लिखता गया.

अगस्त 1944 में पेरिस हुआ आजाद

अगस्त 1944 में पेरिस आजाद हुआ. फिलिस चार महीने तक नाजियों के बीच रहकर बची रहीं. ब्रिटेन लौटीं तो उन्हें मिला Member of the Order of the British Empire, Croix de Guerre, France and Germany Star, और 2014 में Légion d’Honneur, फ्रांस का सर्वोच्च सम्मान. पर उन्होंने कभी ये सब नहीं बताया. वो अपने पति, ऑस्ट्रेलियाई इंजीनियर पैट्रिक डॉयल के साथ केन्या, फिजी, ऑस्ट्रेलिया और फिर न्यूजीलैंड चली गईं.

चार बच्चों की मां बनीं. उनके बच्चों को नहीं पता था कि उनकी मां युद्ध की नायिका थी. साल 2000 में बेटे ने इंटरनेट पर उनका नाम SOE एजेंट्स की लिस्ट में देखा और पूछा गया कि क्या आप जासूस थीं? वो बोलीं हां, थी. और फिर मुस्कुराकर चुप हो गईं.

जिसे दुनिया ने कम आंक उसने इतिहास बदल दिया

1921 में दक्षिण अफ्रीका में जन्मीं फिलिस तीन साल की उम्र में अनाथ हो गईं. बेल्जियन कॉन्गो में पली-बढ़ीं, फिर इंग्लैंड आईं. 1941 में Women’s Auxiliary Air Force से जुड़ीं और दो साल बाद SOE में भर्ती हुईं. ट्रेनिंग रिपोर्ट में लिखा गया था कि जज्बा है लेकिन अनुभव नहीं. लेकिन इतिहास ने सब बदल दिया. इतिहासकार क्लेयर मुल्ली ने कहा कि पुरुष अफसर महिलाओं को कम समझते थे, पर फिलिस ने सबको गलत साबित किया. उन्होंने असाधारण सेवा दी. वो उस दौर में महिला होकर वो काम कर रही थीं, जो मर्द भी करने से डरते थे. उन्होंने अपने कंधों पर पूरे राष्ट्र की उम्मीदें उठाईं और बिना किसी नाम या सम्मान की चाह के.

2014 में जब फ्रांस ने उन्हें सम्मानित किया, तो वो 93 साल की थीं. स्टेज पर आईं तो बस इतना कहा कि मैंने तो बस अपना काम किया. 2023 में जब उनकी मौत हुई, तो वो ब्रिटेन की फ्रांस में सेवा देने वाली आखिरी महिला एजेंट थीं पर दो साल बाद, जब उनकी कहानी फिर सामने आई, तो उसने याद दिलाया कि असली साहस वो नहीं जो शोर करे साहस वो है जो साइकिल पर बैठकर, बालों में रिबन बांधकर, मुस्कुराते हुए हिटलर के राज को चकमा दे दे.

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