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गंगा किनारे दफनाए शवों के अंतिम संस्कार की मांग में दाखिल PIL पर HC ने कहा- रिसर्च करके आइए

उत्तर प्रदेश में कोरोना काल में बड़ी संख्या में प्रयागराज (Prayagraj) में गंगा नदी (Ganga River) के किनारे घाटों पर रेत में शवों को दफनाये जाने से रोकने और दफनाए गए शवों का दाह संस्कार करने की मांग में दाखिल जनहित याचिका (PIL) पर इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि यह जनहित याचिका नहीं बल्कि प्रचार हित याचिका है.

कोर्ट ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता प्रणवेश से पूछा कि क्या दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है? अगर है तो इसमें उसका क्या व्यक्तिगत योगदान रहा है? कोर्ट ने पूछा है कि क्या उन्होंने खुद कब्र खोदकर शवों का अंतिम संस्कार किया है? कोर्ट ने कहा कि याची ने गंगा किनारे निवास करने वाले लोगों के अंतिम संस्कार की परिपाटी व चलन को लेकर कोई रिसर्च नहीं किया. कोर्ट ने कहा कि याची को नये सिरे से याचिका दाखिल करने के लिए यह याचिका वापस लेने की छूट देने के सिवाय अन्य आदेश नहीं दे सकते.कोर्ट ने कहा है कि वह विभिन्न समुदायों में अंतिम संस्कार को लेकर परंपराओं और रीति-रिवाज पर शोध व अध्ययन करके नए सिरे से बेहतर याचिका दाखिल कर सकता है. चीफ जस्टिस संजय यादव और जस्टिस प्रकाश पाडिया की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद याचिका निस्तारित कर दी है.

जनहित याचिका में मांग की गई थी कि बड़ी संख्या में गंगा के किनारे दफनाए गए शवों को निकाल कर उनका दाह संस्कार किया जाए और गंगा के किनारे शवों को दफनाने से रोका जाए. कोर्ट ने कहा कि याचिका देखने से ऐसा लगता है कि याची ने विभिन्न समुदायों की परंपराओं और रीति-रिवाजों का अध्ययन किए बिना ही याचिका दाखिल कर दी है.‌ कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए नए सिरे से बेहतर याचिका दाखिल करने की छूट दी है.