हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी : ‘उत्तराखंड की जेलों के हाल 90 के दशक की तरह’, सरकार को दिए बड़े आदेश
नैनीताल. राज्य की जेलों को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश जारी करते हुए सरकार से कहा कि जेलों के लिए पूर्ण बजट जारी किया जाए और 6 महीने के भीतर खाली पड़े सभी पदों पर भर्ती की जाए. इसके साथ ही, हाई कोर्ट ने नयी जेलों का निर्माण आधुनिक जेलों के मानकों पर करने के निर्देश दिए. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सितारगंज ओपन जेल में औद्योगिक संस्थान खोले जाएं. चीफ जस्टिस आरएस चौहान की कोर्ट ने 6 ज़िलों में नई ज़िला जेल निर्माण के साथ सचिव होम और आईजी जेल को कहा कि जेलों के आवश्यकताओं के हिसाब से प्रस्ताव बनाकर सरकार को दें, जिस पर सरकार हर महीने स्टेटस रिपोर्ट हाईकोर्ट को देगी.
महिलाओं के संदर्भ में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जेलों में सैनिटरी पैड व हाईजीन के साथ रहने और खाने पीने की पूर्ण व्यवस्था की जाए. साथ ही, महिला जेलों में गाइनो डॉक्टर की नियुक्ति भी की जाए. कोर्ट ने पैरोल व सजायाफ्ता कैदियों के लिए सरकार को आदेश दिया कि पुराने नियमों में संशोधन कर नये रूल्स बनाएं. साथ ही, कोर्ट ने सरकार से पूछा कि पैरोल समेत कैदियों के जीवन सुधार के लिए अब तक क्या किया है? पिछली तारीख पर भी चीफ जस्टिस कोर्ट ने आईजी जेल और गृह सचिव से कहा कि वो सभी जेलों का निरीक्षण करें और जेलों की स्थिति पर रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें.
हाई कोर्ट ने कैसे किए सख्त कमेंट्स?
1. किसी भी जेल की स्थिति राज्य में ठीक नहीं है. 90 के दशक की तरह लकड़ी से ही खाना बन रहा है.
2. चम्पावत में तो बाथरूम में कैदियों के लिए खाना बनाया जा रहा है.
3. सजायाफ्ता व अन्य कैदियों के जो संवैधानिक अधिकार हैं, उनका पालन सरकार को करना होगा.
4. कैदियों को एक से दूसरे जेल में शिफ्ट करने के दौरान आर्टिकल 21 का उलंघन हो रहा है.
क्या थे याचिका में सवाल?
दरअसल राज्य की जेलों में सज़ा पूरी कर चुके कैदियों को रिहा करने को लेकर दाखिल जनहित याचिका उत्तराखंड हाईकोर्ट में दाखिल की गई थी. बंदी अधिकार आन्दोलन के संयोजक संतोष उपाध्याय ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कहा है कि राज्य की 11 जेलों में 3420 कैदियों की क्षमता है, लेकिन यहां 5390 से ज्यादा कैदी रखे गये हैं. इस याचिका में कई सवालिया निशान लगाए गए.
1. कई कैदी सजा पूरी कर चुके हैं तो कुछ का व्यवहार अच्छा है, लेकिन रिहा करने के लिए नियम राज्य में नहीं हैं.
2. कई कैदी 70 साल से ज्यादा उम्र के हैं, तो कई बीमार भी, जिन्होंने 14 से 20 साल तक की सज़ा भी पूरी कर ली है, लेकिन नियमों के अभाव में वो जेल में ही बंद हैं.
3. हल्द्वानी जेल की स्थिति ये है कि 302 की क्षमता के उलट 1162 कैदी रखे गए हैं, जिससे खाने पीने व रहने की समस्याएं हैं.