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19 नहीं… 21 नहीं… आखिर क्यों जनरल रावत को दी जाएगी 17 तोपों की ही सलामी?

नई दिल्ली. तमिलनाडु के कुन्नूर के पास हेलिकॉप्टर हादसे में शहीद हुए देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत  का आज अंतिम संस्कार किया जाएगा. रावत को 17 तोपों की सलामी दी जाएगी और अंतिम संस्‍कार के दौरान 800 सैन्‍यकर्मी मौजूद रहेंगे. शुक्रवार सुबह 11 बजे से जनरल रावत और उनकी पत्नी के शव को दर्शन के लिए रखा गया है. आमतौर पर भारत में 21 और 17 तोपों की सलामी दी जाती है. सवाल उठता है कि आखिर बिपिन रावत को 17 तोपों की सलामी ही क्यों दी जाएगी.

भारत में तोपों की सलामी की परंपरा ब्रिटिश राज से ही शुरू हुई थी. उन दिनों ब्रिटिश सम्राट को 100 तोपों की सलामी दी जाती थी. अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और कनाडा सहित दुनिया के कई देशों में अहम राष्ट्रीय दिवसों पर 21 तोपों के सलामी की परंपरा रही है. भारत में गणतंत्र दिवस के मौके़ पर राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी दी जाती है.

17 तोपों की सलामी
17 तोपों की सलामी हाई रैंक के सेना अधिकारी, नेवल ऑपरेशंस के चीफ़ और आर्मी और एयरफ़ोर्स के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ को दी जाती है. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को भी 17 तोपों की सलामी दी जाती है. कई मौक़ों पर भारत के राष्ट्रपति, सैन्य और वरिष्ठ नेताओं को अंतिम संस्कार के दौरान 21 तोपों की सलामी दी जाती है.

कब शुरू हुई ये परंपरा
कहा जाता है कि तोपों की सलामी देने का प्रचलन 14वीं शताब्दी में शुरू हुआ था. उन दिनों जब भी किसी देश की सेना समुद्र के रास्ते किसी देश में जाती थी, तो तट पर 7 तोपें फायर की जाती थीं. इसका मकसद ये संदेश पहुंचाना था कि वो उनके देश पर हमला करने नहीं आए हैं. उस समय ये भी प्रथा रही थी कि हारी हुई सेना को अपना गोला-बारूद खत्म करने के लिए कहा जाता था. जिससे वो उसका फिर इस्तेमाल न कर सके. जहाजों पर सात तोपें हुआ करती थीं. क्योंकि सात की संख्या को शुभ भी माना जाता है.