पाकिस्तान में इतना हुआ बदनाम मंटो कि दुनियाभर में मशहूर हो गया
नई दिल्ली । लेखक यूं तो मशहूर ही होते हैं या फिर गुमनाम, लेकिन कभी सिर्फ पाकिस्तान में सिमटे लेखक सआदत हसन मंटो इस कदर बदनाम किए गए, वह बेहद मशहूर हो गए। पाकिस्तान के इस लेखक के लिए एक दौर ऐसा भी आया, जब वह अपने देश से ज्यादा हिंदुस्तान फिर पूरी दुनिया में मशहूर हो गए। मौत के छह दशक बाद अब पाकिस्तान का लेखक सआदत हसन मंटो उर्दू साहित्य की दीवारें लांघकर अनूदित कहाननियों के जरिये दुनिया भर के पाठकों के मन में समा चुका है। पठनीयता के नजरिये से देखें या फिर लोकप्रियता के मानदंड पर मंटो आज मैक्सिम गोर्की, एंटेन चेखव, मोपासां के साथ भारत के प्रेमचंद और शरतचंद-रवींद्रनाथ की बराबरी में खड़े हैं। यह अलग बात है कि इससे तमाम आलोचक और लेखक असमहत हैं। बावजूद असहमति के वह यह भी जानते हैं कि मंटो आज भी जिंदा है, अपनी कृतियों के जरिये-रचे गए किरदारों के रूप में।
साल 1912 में भारत के पंजाब (समराला) में पैदा हुए सआदत हसन मंटो को भारत और पाकिस्तान के बंटवार ने अंदर तक तोड़कर रख दिया। यह अलग बात है कि बंटवारे को अपनी बदकिस्मती मानते हुए पाकिस्तान को चुनने वाले सआदत हसन ने कट्टर मुल्क में जबरदस्त घुटन महसूस की। यही वजह रही कि यह घुटन उनकी कहानियों-रचनाओं में रचे-गढ़े गए किरदारों के जरिए दिखती है। बंटवारे के दौरान दंगों को उन्होंने अपनी रचनाओं में ऐसे किरदारों को खूब जगह दी है, पाठकों को कुछ सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं।
उनकी रचनाओं में कहीं रिश्ते रेंगते हैं, तो कहीं इंसानियत भी दम तोड़ती है। बावजूद इसके उनके रचे किरदार इन सब विद्रुपताओं के बावजूद इंसानियत को जिंदा रखने की नाकाम ही सही कोशिश तो करते दिखाई देते हैं। धुंआ, बू, ठंडा गोश्त, काली सलवार और ऊपर, नीचे और दरमियां मंटो की कुछ ऐसी ही चर्चित कहानियां हैं, जिनमें समाज तो है, लेकिन सामाजिक विद्रूपता के साथ। इंसानियत तो है, लेकिन उसके चीथड़े खुद इंसान ही उड़ाता नजर आ रहा है।