जानिए क्या होता है कमिश्नर सिस्टम, क्या होंगे इसके लागू हो जाने के फायदे?
नई दिल्ली । नए साल की शुरूआत के बाद से ही यूपी की कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठ रहे हैं। एक प्रशासनिक अधिकारी पर कुछ लोग आरोप लगाते हैं तो दूसरा अधिकारी सामने वाले को गलत और भ्रष्टाचार में लिप्त बताता है। बीते 10 दिनों में यूपी की कानून व्यवस्था में 6 पुलिस अधिकारियों के नाम उछले हैं। इसी के बाद ये चर्चा भी आम हो गई है कि यहां के बड़े शहरों में कमिश्नर सिस्टम (Commissioner System) लागू कर देना चाहिए। इसको लेकर सीएम और डीजीपी के बीच बातचीत भी अंतिम चरण में थी। अब इस पर फाइनल मोहर लग गई है। कमिश्नर सिस्टम आम लोगों की समझ से बाहर है, हम आपको बता रहे हैं कि जिस सिस्टम को सरकार लागू करने जा रही है आखिर वो कमिश्नर सिस्टम होता क्या है? ऐसा क्यों माना जाता है कि कानून व्यवस्था के लिए कमिश्नर प्रणाली ही बेहतर होती है।
फैसला लेने को पुलिस हो जाएगी स्वतंत्र
यदि हम कमिश्नर प्रणाली को सामान्य भाषा में समझें तो पुलिस अधिकारी कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, वे आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम या मंडल कमिश्नर या फिर शासन के आदेश अनुसार ही कार्य करते हैं। लेकिन पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने पर जिला अधिकारी और एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के ये अधिकार पुलिस अधिकारियों को मिल जाते हैं। यूपी के नोएडा और लखनऊ में पायलेट प्रोजेक्ट के तहत कमिश्नर सिस्टम लागू करने की बात कही जा रही थी। अब इस नई व्यवस्था पर सरकार की मोहर लग गई है। सोमवार को योगी आदित्यनाथ ने इसके बारे में विस्तार से जानकारी दी।
कमिश्नर ले पाएंगे निर्णय
कमिश्नर प्रणाली अगर लागू होती है तो पुलिस के अधिकार काफी हद तक बढ़ जाएंगे। कानून व्यस्था से जुड़े तमाम मुद्दों पर पुलिस कमिश्नर निर्णय ले सकेगा, जिले में डीएम के पास अटकी रहने वाली तमाम फाइलों को अनुमति लेने का तमाम तरह का झंझट भी खत्म हो जाएगा।
एक बात और होगी कि कमिश्नर सिस्टम लागू होते ही एसडीएम और एडीएम को दी गई एग्जीक्यूटिव मैजिस्टेरियल पावर पुलिस को मिल जाएगी। जिससे पुलिस शांति भंग की आशंका में निरुद्ध करने से लेकर गुंडा एक्ट, गैंगस्टर एक्ट और रासुका तक लगा सकेगी। इन चीजों को करने के लिए डीएम से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी, फिलहाल ये सब लगाने के लिए डीएम की सहमति जरूरी होती है।
क्या है कमिश्नर प्रणाली
आजादी से पहले अंग्रेजों के दौर में कमिश्नर प्रणाली लागू थी, इसे आजादी के बाद भारतीय पुलिस ने अपनाया। इस वक्त यह व्यवस्था 100 से अधिक महानगरों में सफलतापूर्वक लागू है। भारतीय पुलिस अधिनियम, 1861 के भाग 4 के तहत जिला अधिकारी के पास पुलिस पर नियंत्रण करने के कुछ अधिकार होते हैं। इसके अलावा, दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को कानून और व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ शक्तियां देता है।
कमिश्नर सिस्टम की पहले हो चुकी है पहल
यूपी में में कमिश्नर सिस्टम लागू करने की यह पहल कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले 1976-77 में प्रयोग के तौर पर कानपुर में कमिश्नर सिस्टम लागू करने की कोशिश की गई थी। साल 2009 में मायावती सरकार ने भी नोएडा और गाजियाबाद को मिलाकर कमिश्नर प्रणाली लागू करने की तैयारी की थी। मगर वो अमलीजामा नहीं पहन सकी। पूर्व राज्यपाल राम नाईक ने भी प्रदेश की योगी सरकार को कई जिलों में कमिश्नर सिस्टम लागू करने की बात कही थी।
क्या हैं इस प्रणाली के फायदे
कमिश्नर प्रणाली लागू होते ही पुलिस के अधिकार बढ़ जाएंगे। किसी भी आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए पुलिस को डीएम आदि अधिकारियों के फैसले के आदेश का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पुलिस खुद किसी भी स्थिति में फैसला लेने के लिए ज्यादा ताकतवर हो जाएगी। जिले की कानून व्यवस्था से जुड़े सभी फैसलों को लेने का अधिकार कमिश्नर के पास होगा। होटल के लाइसेंस, बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार भी इसमें शामिल होगा। धरना प्रदर्शन की अनुमति देना ना देना, दंगे के दौरान लाठी चार्ज होगा या नहीं, कितना बल प्रयोग हो यह भी पुलिस ही तय करती है। जमीन की पैमाइश से लेकर जमीन संबंधी विवादों के निस्तारण का अधिकार भी पुलिस को मिल जाएगा।
कमिश्नर प्रणाली में क्या होगी अधिकारियों की रैंकिंग
आम तौर पर पुलिस कमिश्नर विभाग को राज्य सरकार के आधार पर डीआईजी और उससे ऊपर यानी आईजी रैंक व अन्य के अधिकारियों को दिया जाता है। इनके अधीन पद के अनुसार कनिष्ठ अधिकारी होते हैं। फिलहाल ये चर्चा है कि नोएडा और लखनऊ में आईजी रैंक के अधिकारी को कमिश्नर नियुक्त किया जाएगा। अभी तक इन दोनों जिलों में एसएसपी की तैनाती होती थी।
पुलिस कमिश्नर को मिलती है मजिस्ट्रेट की पॉवर
भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के अंतर्गत जिलाधिकारी यानी डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस पर नियत्रंण के अधिकार भी होते हैं। इस पद पर IAS अधिकारी बैठते हैं। लेकिन पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू हो जाने के बाद ये अधिकार पुलिस अफसर को मिल जाते हैं, जो एक IPS होता है। जिले की बागडोर संभालने वाले डीएम के बहुत से अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास चले जाते हैं।
पुलिस कमिश्नर को ज्यूडिशियल पॉवर
पुलिस कमिश्नर प्रणाली में पुलिस कमिश्नर सर्वोच्च पद होता है। ज्यादातर यह प्रणाली महानगरों में लागू की गई है। पुलिस कमिश्नर को ज्यूडिशियल पॉवर भी होती हैं। CRPC के तहत कई अधिकार इस पद को मजबूत बनाते हैं। इस प्रणाली में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस ही मजिस्ट्रेट पॉवर का इस्तेमाल करती है।
बड़े महानगरों के लिए उपयोगी है कमिश्नर प्रणाली
हरियाणा में 3 महानगरों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू है। इन शहरों में एनसीआर गुरुग्राम, फरीदाबाद और चंडीगढ़ से लगा पंचकुला शहर शामिल है। नोएडा, गाजियाबाद जैसे शहरों में कमिश्नरी सिस्टम लागू करने के लिए एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि इन शहरों में आबादी तेजी से बढ़ रही है। कानून व्यवस्था बेहतर बनाए रखने और लोगों को सुरक्षा देने के लिए इसे लागू किया जाना जरूरी है।
कैसे होगा काम
पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू होने से पुलिस को बड़ी राहत मिलती है। कमिश्नर का मुख्यालय बनाया जाता है। एडीजी स्तर के सीनियर आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाकर तैनात किया जाता है। महानगर को कई जोन में विभाजित किया जाता है। हर जोन में डीसीपी की तैनाती होती है। जो एसएसपी की तरह उस जोन में काम करता है, वो उस पूरे जोन के लिए जिम्मेदार होता है। सीओ की तरह एसीपी तैनात होते हैं ये 2 से 4 थानों को देखते हैं।