Defence: आसियान के साथ भारत का रणनीतिक जुड़ाव सिर्फ लेन-देन का नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और सिद्धांत आधारित है. यह इस साझा विश्वास पर आधारित है कि भारत-प्रशांत क्षेत्र खुला, समावेशी और दबाव से मुक्त होना चाहिए. हिंद-प्रशांत के लिए भारत का सुरक्षा दृष्टिकोण, रक्षा सहयोग, आर्थिक विकास, प्रौद्योगिकी साझाकरण और मानव संसाधन उन्नति के साथ जुड़ा हुआ है. सुरक्षा, विकास और स्थिरता के बीच अंतर्संबंध आसियान के साथ साझेदारी के प्रति भारत के दृष्टिकोण को परिभाषित करते हैं.
एडीएमएम-प्लस को भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और व्यापक हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण का एक अनिवार्य घटक बताते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आसियान और प्लस देशों के साथ रक्षा सहयोग को क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और क्षमता निर्माण में योगदान के रूप में देखा जाता है.
एडीएमएम-प्लस अपने 16वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है और भारत मतभेदों के बजाय संवाद को बढ़ावा देने, शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने वाले क्षेत्रीय तंत्रों को मजबूत करने के लिए आपसी हित के सभी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने के लिए तैयार है. पिछले पंद्रह वर्षों का अनुभव है कि समावेशी सहयोग कारगर है. क्षेत्रीय स्वामित्व वैधता का निर्माण करता है और सामूहिक सुरक्षा व्यक्तिगत संप्रभुता को मजबूत करती है. यह सिद्धांत आने वाले वर्षों में एडीएमएम-प्लस और आसियान के प्रति भारत के दृष्टिकोण का मार्गदर्शन करते रहेंगे.
हिंद-प्रशांत का प्रमुख मंच है एडीएमएम-प्लस
रक्षा मंत्री ने कहा कि आसियान के साथ भारत का जुड़ाव एडीएमएम-प्लस से पहले का है. इस व्यवस्था ने इसे एक उपयुक्त रक्षा मंच प्रदान किया है जो इसके राजनयिक और आर्थिक पहलुओं का पूरक है. वर्ष 2022 में आसियान-भारत साझेदारी का व्यापक रणनीतिक साझेदारी में मजबूती न केवल राजनीतिक संबंधों की परिपक्वता को दर्शाता है बल्कि क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को भी दिखाता है. भारत एडीएमएम-प्लस की स्थापना के बाद से एक सक्रिय और रचनात्मक भागीदार रहा है.
भारत ने तीन विशेषज्ञ कार्य समूहों की सह-अध्यक्षता की है. वर्ष 2014 से 2017 तक वियतनाम के साथ मानवीय खनन कार्रवाई पर, वर्ष 2017 से 2020 तक म्यांमार के साथ सैन्य चिकित्सा और वर्ष 2020 से 2024 तक इंडोनेशिया के साथ मानवीय सहायता और आपदा राहत और मौजूदा समय में वर्ष 2024-2027 के लिए मलेशिया के साथ आतंकवाद-निरोधक समूह पर काम कर रहा है. रक्षा मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने कई विशेषज्ञ कार्य समूहों में सक्रिय रूप से भाग लिया है. क्षेत्रीय अभ्यासों की मेजबानी और भागीदारी के साथ साझा परिचालन मानक के निर्माण में योगदान दिया है.